Sunday, December 28, 2008

आईये दिल्ली के बाद ग़ज़ल की लखनवी महफ़िल में शिरकत करें चंद अशआरों के साथ -

लखनऊ : जिसके दामन में मुहब्बत के फूल खिलते हैं...

आज २७ दिसम्बर है , उर्दू के मशहूर शायर मिर्जा असदुल्लाह खाँ ग़ालिब का और हम चर्चा कर रहे हैं गालिब के शहर दिल्ली का , जिसे २००० वर्ष पूर्व बसाया था गुप्त साम्राज्य ने । वैसे तो इसका इतिहास जुडा है महाभारत काल से , मगर दिल्ली नही खांडव प्रस्थ और इन्द्रप्रस्थ के रूप में । दिल्ली ही एक ऐसा शहर है जिसके बारे में कहते - कहते थक जायेंगे आप , शब्दों की श्रृंखलाएं छोटी पड़ जायेंगी मगर अंत नही होगा दिल्ली की कहानी का । दिल्ली के बाद जो शहर गालिब का पसंदीदा रहा उसमें से एक है तहजीव का शहर लखनऊ , जिसके बारे में गालिब ने कहा है , की -

"वां पहुँच कर जो गश आता पैदम है हमको ,

सद रहें आहंगे जमीन बोस कदम है हमको ,

लखनऊ आने का बाईस नही खुलता यानी -

हाविसे सिरों तमाशा सो वह कम है हमको । "

जब लखनऊ का जिक्र आ ही गया , तो चलिए चर्चा करते हैं नबाबों केशहरलखनऊ की । इस शहर को तहजीब का शहर भी कहते हैं , जिसके बारे में किसी शायर ने कहा है - " लखनऊ है तो महज गुम्बद वो मीनार नही , सिर्फ़ एक शहर नही कूचा वो बाज़ार नहीं , इसके दामन में मुहब्बत के फूल खिलते हैं - इसकी गलियों में फरिश्तों के पते मिलते हैं ... !"

लखनऊ की चर्चा हो और वहाँ के एक अजीम फनकार और ब्लोगर रवीन्द्र प्रभात की चर्चा न हो तो बेमानी होगा , क्योंकि उन्होंने कुछ तो है ......जो कि ब्लॉग पर ग़ज़ल के माध्यम से लखनऊ की संस्कृति पर बहुत हीं सुंदर अभिव्यक्ति दी है । मुझे बहुत पसंद आयी , संभव है आपको भी आयी होगी । यह ग़ज़ल तब आयी थी जब मेरा यह ब्लॉग अस्तित्व में भी नही था । वैसे लखनऊ के ऊपर अपने एक संस्मरण में भी परिकल्पना पर उन्होंने कहा है " आदाब से अदब तक यही है लखनऊ मेरी जान ....!" मैं साहित्यकार नहीं हूँ जो किसी शहर के बारे में ऐसी अनुभूति दे सकूं । फ़िर भी मुझे जो अच्छा लगता है उसका उल्लेख करना अपना धर्म समझती हूँ । अगर आप न पढ़े हों तो इस संस्मरण को अवश्य पढ़े । अपने शहर के बारे में ऐसी अनुभूति हर किसी में होनी चाहिए ।

लखनऊ पर मैं अपनी शेष बातें रखूँगी अब अगले पोस्ट में , तब तक के लिए शुभ विदा !

6 comments:

गीतेश said...

रवीन्द्र प्रभात जी के इस पोस्ट को मैंने भी नही पढा था और जब पढा तो खो गया लखनवी प्रभामंडल में , बाकई उनकी लखनऊ पर लिखी गयी ग़ज़ल बहुत ही उम्दा है ! वैसे आपका प्रस्तुतीकरण भी आकर्षक है , बधाईयाँ !

Unknown said...

bahut achchi parshtuti hai!
dhanyvad !

"अर्श" said...

bahot bahot badhai aapko...

Varun Kumar Jaiswal said...

माला जी एक बार फ़िर से लखनऊ की विशेषताएं आपने ग़ज़ल के साथ प्रस्तुत की |
वाकई काबिल- ऐ- तारीफ ||

Neeraj Rohilla said...

आज पहली बार आपके ब्लाग पर आया लेकिन सारी पोस्ट पढीं । आपका ब्लाग जगत में स्वागत है । लखनऊ या फ़िर नखलऊ (मेरे एक मित्र ये कहते हैं) के बारे में अन्य जानकारी का इन्तजार रहेगा ।

संतोष कुमार सिंह said...

शहरों के इस सफर में आप जिस मुकाम पर पहुची हैं सराहनीय हैं।आपकी यात्रा जारी रहे शुभकामनाओं के साथ नव वर्ष मंगलमय हो ।
संतोष(ई0टी0भी0पटना)