Friday, January 23, 2009

एक ऐसा शहर जो साक्षी है संस्कृति विकास के समस्त चरणों का ....!


आईये पटना के बाद चलते हैं एक ऐसे शहर में , जो एक लाख वर्ष ईसा पूर्व आदि पाषाण काल से आधुनिक काल तक के अनेक पुरातात्विक अवशेष को अपने भीतर समेटे हुए साक्षी है संस्कृति विकास के विभिन्न चरणों का , गवाह है भगवान विरसा मुंडा के क्रांतिकारी पुरुषार्थ का । यह वही भूमि है , जहाँ टैगोर हिल पर बैठकर विश्व कवि रविन्द्र नाथ टैगोर ने गाये प्रकृति के गीत और इसी भूमि पर जन्में अलबर्ट एक्का ने अपने प्राणों की आहूति देकर पाकिस्तान को भारतीय सैन्य शक्ति का एहसास कराया , जिसके नाम पर यहाँ के महत्वपूर्ण चौक का नामाकरण हुआ , जो उपरोक्त चित्र में दृष्टिगोचर है ।
इसी पवित्र भूमि पर बैठकर जमशेद जी टाटा ने टाटानगर की परिकल्पना करते हुए दिया था भारत की आर्थिक समृद्धि को एक नया आयाम ।
राँची भारत का एक प्रमुख शहर है और यह झारखंड प्रदेश की राजधानी है। पहले जब यह बिहार राज्य का हिस्सा था तब गरमियों में अपने अपेक्षाकत ठंडे मौसम के कारण प्रदेश की राजधानी हुआ करती थी। झारखंड आंदोलन के दौरान राँची इसका केन्द्र हुआ करता था। राँची एक प्रमुख औद्योगिक केन्द्र भी है। जहाँ मुख्य रुप से एच ई सी (हेवी इंजिनियरिंग कारपोरेशन), स्टील अथारटी आफ इंडिया, मेकन इत्यादि के कारखाने हैं ।
यह सदैव जम्मू की तरह ही अपनी भौगोलिक सुन्दरता से लुहाता रहा है । प्राकृतिक सुन्दरता का अनुपम उपहार हूंडरू का जल प्रपात भी यहीं है, जिसकी तस्वीर ऊपर में आप देख सकते हैं । मुझे तो यहाँ स्वर्ग का आभास होता है । यह शहर हमारी भौगोलिक सुन्दरता और भूगर्भिक समृद्धि का जीवंत प्रमाण है , यहाँ एक बार आईये आप ख़ुद कहेंगे - मेरा भारत महान है ....!

Monday, January 19, 2009

पराक्रम, प्रमाणिकता और नातेदारी से मिलकर बना है पटना

आईये लखनऊ के बाद चलते हैं एक ऐसे प्रदेश की राजधानी में , जहाँ विभिन्न धर्मावालंवियों और पैगंबरों ने शान्ति, प्रेम , भाईचारे व् एकता का संदेश दिया था, वहीं अशोक महान , चन्द्रगुप्त मौर्य और विक्रमादित्य जैसे पराक्रमी राजाओं ने राज किया ।इस प्रकार पटना में पहला अक्षर "प" बोध कराता है पराक्रम का ।

महाभारत काल में मगध साम्राज्य को समृद्धि से जोड़कर विलाक्षनता का प्रमाण देने वाला शासक जरासंध , अपनी निपुणता तथा कुटनीतिक तर्कों के आधार पर व्यापक चिंतन सरोकार देने वाला चिन्तक चाणक्य और शून्य की संरचना करते हुए खगोल शास्त्र को प्रमाणिक आधार देने वाला अन्वेषक आर्यभट्ट को जन्म देकर यह भूमि विश्व में अपनी प्रमाणिकता को प्रतिविन्वित करती है । इस प्रकार पटना का दूसरा अक्षर "ट" वोध कराता है टकसाल यानी प्रमाणिकता का ।

यह वही भूमि है जहाँ विश्व विजेता सिकंदर महान की सफलता का रथ अचानक थम गया था । वहीं सिक्खों के दसवें गुरु गुरु गोविन्द सिंह की जन्म स्थली पटना साहेब को प्राकट्य करके यह भूमि विश्व समुदाय में नातेदारी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को प्रमाणित करती है । भारत का यह एक मात्र ऐसा शहर है जहाँ कई महत्वपूर्ण संस्कृतियाँ एक साथ प्रवाहित होती है । इस प्रकार पटना का अन्तिम अक्षर "ना" विश्व वन्धुत्व अर्थात विश्व से नातेदारी का बोध कराता है ।

अर्थात पराक्रम , प्रमाणिकता और नातेदारी का एहसास कराता है यह पटना शहर ।

पटना का इतिहास काफी पुराना है जो पवित्र नदी गंगा के किनारे बसा हुआ है। पटना भारत के गौरवशाली शहरों में से एक है। इस शहर को ऐतिहासिक इमारतों के लिए भी जाना जाता है। पटना का इतिहास पाटलीपुत्र के नाम से 5वीं सदी में शुरू होता है। तीसरी सदी ईसा पूर्व में पटना मगध की राजधानी बनी जहां के शासक महान सम्राट अशोक हुए। सम्राट अशोक के शासनकाल को भारत के इतिहास में महत्‍वपूर्ण स्‍थान प्राप्‍त है। चूंकि पटना से वैशाली, राजगीर, नालंदा, बोधगया और पावापुरी के लिए मार्ग जाता है, इसलिए यह शहर बौद्ध और जैन धर्मावलंबियों के लिए गेटवे' के रूप में भी जाना जाता है। आजादी मिलने के बाद पटना बिहार राज्‍य की राजधानी बनी। पटना पर्यटन के लिहाज से एक प्रमुख स्‍थान है। यह वाणिज्यिक रूप से भी बिहार का एक प्रमुख शहर है। इसके अलावा महात्‍मा गांधी सेतु पटना को बिहार के अन्‍य पर्यटन स्‍थल से सड़क के माध्‍यम से जोड़ता है। यह पुल 7.5 किलोमीटर लंबा है। गोलघर, हरमंदिर, कुम्‍हरार आदि यहां के प्रमुख दर्शनीय स्‍थल हैं।
पटना एक ओर जहां शक्तिशाली राजवंशों के लिए जाना जाता है। वहीं दूसरी ओर ज्ञान और अध्‍यात्‍म के कारण भी यह काफी लोकप्रिय रहा है। यह शहर कई प्रबुद्ध यात्रियों जैसे
फाह्यान, ह्वेनसांग के आगमन का भी साक्षी है। कई इतिहासविद यह भी मानते हैं कि महानतम कूटनीतिज्ञ कौटिल्‍य ने यहीं पर अर्थशास्‍त्र की रचना की थी।

इस प्रकार यह शहर कई संस्कृतियों की पहचान है और इन्ही सब कारणों से मेरा भारत महान है !

Tuesday, January 6, 2009

उच्च विकसित कुलीन संस्कृति के लिए विख्यात है लखनऊ

लखनऊ १५२८ में भारत के पहले मुग़ल शासक बाबर द्वारा कब्जा किए जाने के बाद से महत्वपूर्ण हुआ । उनके पोते अकबर के शासन काल में यह शहर अवध प्रांत का हिस्सा बना । १७७५ में अवध के नवाब बने आसफुदौल्ला ने अपनी राजधानी को फैजाबाद से स्थानांतरित कर लखनऊ ले आए । जब १८५७ में भारतीय विद्रोह शुरू हुआ तो तत्कालीन ब्रिटिश कमिश्नर सर हेनरी लौरेंस और लखनऊ में रहने वाले यूरोपीय लोगों की ब्रिटिश तूकादियों द्वारा छुडाये जाने के पहले कई महीनों तक घेरेबंदी में कैद रहना पडा । उस समय अंग्रेजों ने शहर छोड़ दिया , लेकिन अगले ही साल भारत पर फ़िर से नियंत्रण पाकर वापस लौट आए । लखनऊ अपनी उच्च विकसित कुलीन संस्कृति के लिए विख्यात है, जो यहाँ के आम-आदमी में रच-बस गयी है , तमीज-तहजीब और नफासत इसकी पहचान है ।

लखनऊ में वास्तुशिल्प के उत्कृष्ट उदाहरण है - बड़ा इमामवाड़ा , जो एक मंजिला इमारत है , जहाँ मुहर्रम के महीने के दौरान शिया मुसलमान इकठ्ठा होते हैं। रूमी दरबाजा तुर्की दरबाजा इन्स्ताम्बुल के बाब-ऐ-हुमायूं की तर्ज़ पर बनाया गया है और सर्वाधित संरक्षित स्मारक रेजीडेंसी , जो १८५७ में विद्रोह के दौरान ब्रिटिश टुकडियों की आत्म रक्षा का स्थल था । १८५७ में यहाँ विद्रोह के दौरान शहीद हुए भारतीयों की स्मृति में एक स्मारक बनाया गया ।

यहीं पर हुआ था १९१६ का ऐतिहासिक लखनऊ समझौता , बाल गंगाधर तिलक और मुहम्मद अली जिन्ना के बीच । कुल मिलाकर लखनऊ हमारी तहजीव की एक अलग पहचान है और यहाँ जो भी एक बार आ जाता ,मेहमाननवाजी देखकर कह उठता कि सचमुच मेरा भारत महान है ।