
नाम की कहानी और विवाद चाहे जो भी हों इतना तो अवश्य तय है कि यह आधुनिक भारत के शहर में सबसे पहले बसने वाले शहरों में से एक है।
जी हाँ , मैं बताऊंगी कैसे और क्यों?
इस प्रकार यह शहर कई संस्कृतियों की पहचान है और इन्ही सब कारणों से मेरा भारत महान है !
लखनऊ : जिसके दामन में मुहब्बत के फूल खिलते हैं...
आज २७ दिसम्बर है , उर्दू के मशहूर शायर मिर्जा असदुल्लाह खाँ ग़ालिब का और हम चर्चा कर रहे हैं गालिब के शहर दिल्ली का , जिसे २००० वर्ष पूर्व बसाया था गुप्त साम्राज्य ने । वैसे तो इसका इतिहास जुडा है महाभारत काल से , मगर दिल्ली नही खांडव प्रस्थ और इन्द्रप्रस्थ के रूप में । दिल्ली ही एक ऐसा शहर है जिसके बारे में कहते - कहते थक जायेंगे आप , शब्दों की श्रृंखलाएं छोटी पड़ जायेंगी मगर अंत नही होगा दिल्ली की कहानी का । दिल्ली के बाद जो शहर गालिब का पसंदीदा रहा उसमें से एक है तहजीव का शहर लखनऊ , जिसके बारे में गालिब ने कहा है , की -
"वां पहुँच कर जो गश आता पैदम है हमको ,
सद रहें आहंगे जमीन बोस कदम है हमको ,
लखनऊ आने का बाईस नही खुलता यानी -
हाविसे सिरों तमाशा सो वह कम है हमको । "
जब लखनऊ का जिक्र आ ही गया , तो चलिए चर्चा करते हैं नबाबों केशहरलखनऊ की । इस शहर को तहजीब का शहर भी कहते हैं , जिसके बारे में किसी शायर ने कहा है - " लखनऊ है तो महज गुम्बद वो मीनार नही , सिर्फ़ एक शहर नही कूचा वो बाज़ार नहीं , इसके दामन में मुहब्बत के फूल खिलते हैं - इसकी गलियों में फरिश्तों के पते मिलते हैं ... !"
लखनऊ की चर्चा हो और वहाँ के एक अजीम फनकार और ब्लोगर रवीन्द्र प्रभात की चर्चा न हो तो बेमानी होगा , क्योंकि उन्होंने कुछ तो है ......जो कि ब्लॉग पर ग़ज़ल के माध्यम से लखनऊ की संस्कृति पर बहुत हीं सुंदर अभिव्यक्ति दी है । मुझे बहुत पसंद आयी , संभव है आपको भी आयी होगी । यह ग़ज़ल तब आयी थी जब मेरा यह ब्लॉग अस्तित्व में भी नही था । वैसे लखनऊ के ऊपर अपने एक संस्मरण में भी परिकल्पना पर उन्होंने कहा है " आदाब से अदब तक यही है लखनऊ मेरी जान ....!" मैं साहित्यकार नहीं हूँ जो किसी शहर के बारे में ऐसी अनुभूति दे सकूं । फ़िर भी मुझे जो अच्छा लगता है उसका उल्लेख करना अपना धर्म समझती हूँ । अगर आप न पढ़े हों तो इस संस्मरण को अवश्य पढ़े । अपने शहर के बारे में ऐसी अनुभूति हर किसी में होनी चाहिए ।
लखनऊ पर मैं अपनी शेष बातें रखूँगी अब अगले पोस्ट में , तब तक के लिए शुभ विदा !
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