आईये अब रांची के बाद एक ऐसे शहर की ओर प्रस्थान करते हैं जिसके बारे में कहा जाता है ,कि यह शहर कर्म - कर्तव्य की सीख देता है । एक ऐसा शहर, जो अपनी दिनचर्या की शुरूआत के साथ बोध कराता है समूह की महत्वाकांक्षा का, लक्ष्य प्राप्ति के प्रति आशान्वित प्रयास का, कार्य के प्रति कटिबद्धता का और तारतम्यता के साथ निरन्तर प्रगतिशील रहने की परम्परा का।कोलकाता का शाब्दिक भाव -
को - कोरस यानी समूह
ल - लक्ष्य
का - कार्य और
ता - तारतम्य
एक ऐसा प्राचीन शहर, जिसका नाम उसकी गौरवशाली सांस्कृतिक विरासत और मानवीय दृष्टिकोण को प्रतिविम्बित करता है। विश्व के महान नगरों में से एक, जहां गंगा अपनी समस्त सहायक नदियों के साथ सामूहिकता का बोध कराती हुई एक निश्चित परिणाम को प्राप्त करती है। अत्यन्त प्राचीन और समृद्ध परम्परा को अपने अन्तर में सजोये यह महानगर जहां एक ओर अपनी संस्कृति, बंगला भाषा, कला-प्रेम, दूरदर्शिता एवं कार्यो के प्रति कटिबद्धता के लिये प्रसिद्ध है, वहीं सामूहिक श्रमशक्ति को प्रमुखता के साथ प्रतिष्ठापित करते हुये निरन्तर प्रगति-पथ पर गुणवत्ता के साथ क्रियाशील है।
कोलकाता वासी पूजते हैं - काली के रूप में शक्ति को, महत्व देते हैं संगठन को और मिष्ठान को संस्कृति का अहम् हिस्सा के रूप में स्वीकार करते हुये प्रतिविम्बित करते हैं वाणी की मधुरता को।
एक बार गोपाल कृष्ण गोखले ने कहा था कि - ‘‘जो आज बंगाल सोचता है, वह कल भारत सोचेगा।’’
.........शेष अगले पोस्ट में
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6 comments:
लिखने वालों ने बहुत लिखे हैं कोलकाता के विषय में , किंतु इतना सारगर्भित मैंने कभी नही पढा , सचमुच आपके लेखन में गज़ब का आकर्षण है माला जी , किसी की नज़र न लगे ......बधाईयाँ !
‘‘जो आज बंगाल सोचता है, वह कल भारत सोचेगा।’’
इसमें कोई संदेह नही ....!
बहुत बढ़िया लिखा है. बस, कलकत्ता जाने ही वाले हैं.
koi to hai hai jo dharoharo se rubru karaane ko betaab hai
dhanywaad
बहुत बढ़िया लिखा है.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति,,,
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