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Tuesday, February 17, 2009

जिसके स्वर्णिम इतिहास और समृद्ध वर्तमान की कायल है, समूची दुनिया।

पिछले पोस्ट में मैंने कोलकाता की समृद्धि , संस्कृति और संस्कार से जुडी कुछ अद्भुत बातों का उल्लेख किया था , आईये अब उससे आगे बढ़ते हैं और बताते हैं आपको कोलकाता से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण पहलू -
आधिकारिक रूप से इस शहर का नाम कोलकाता १ जनवरी, २००१ को रखा गया। इसका पूर्व नाम अंग्रेजी में भले ही "कैलकटा' हो लेकिन बंगाल और बांग्ला में इसे हमेशा से कोलकाता या कोलिकाता के नाम से ही जाना जाता रहा है जबकि हिन्दी भाषी समुदाय में ये कलकत्ता के नाम से जाना जाता रहा है।
सम्राट अकबर के चुंगी दस्तावेजों और पंद्रहवी सदी के बांग्ला कवि विप्रदास की कविताओं में इस नाम का बार बार उल्लेख मिलता है। लेकिन फिर भी नाम की उत्पत्ति के बारे में कई तरह की कहानियाँ मशहूर हैं। सबसे लोकप्रिय कहानी के अनुसार हिंदुओं की देवी काली के नाम से इस शहर के नाम की उत्पत्ति हुई है। इस शहर के अस्तित्व का उल्लेख व्यापारिक बंदरगाह के रूप में चीन के प्राचीन यात्रियों के यात्रा वृतांत और फारसी व्यापारियों के दस्तावेजों में भी उल्लेख है। महाभारत में भी बंगाल के कुछ राजाओं का नाम है जो कौरव सेना की तरफ से युद्ध में शामिल हुये थे।
नाम की कहानी और विवाद चाहे जो भी हों इतना तो अवश्य तय है कि यह आधुनिक भारत के शहर में सबसे पहले बसने वाले शहरों में से एक है।
यह वही भूमि है -
जहां विश्व कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर की गीतांजलि गूंजी थी, राजाराममोहन राय, विद्यासागर, रामकृष्ण परमहंस तथा विवेकानन्द का व्यापक चिन्तन सरोकार प्रस्फुटित हुआ था। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और मौलाना अबुल कलाम आजाद ने स्वतन्त्रता का सशक्त शंखनाथ किया, वहीं सत्यजीत राय ने अपनी उत्कृष्ट रचनाओं के माध्यम से सिनेमा जगत में क्रान्ति ला दी। सादगी और मानवीयता को कर्म-कर्तव्य को ढाल बनाकर देवत्व को प्राप्त करने वाली महान महिला ‘मदर टेरेसा’ की सेवास्थली के रूप में जहां आपका नगर विश्व-विख्यात है, वहीं नोबेल पुरस्कार से सम्मानित भारत के मात्र दो विभूतियों रवीन्द्रनाथ टैगोर और अमत्र्य सेन को जन्म देकर यह पवित्र मिट्टी विश्वपटल पर गौरवान्वित हुई है।
सचमुच कोलकाता भारत की शान है ,
और - इसे देखकर होठों से फूट पड़ते हैं ये शब्द -
कि मेरा भारत महान है ......!

Friday, February 13, 2009

एक ऐसा शहर जो संगठन की शक्ति को प्रमाणित करता है ....

आईये अब रांची के बाद एक ऐसे शहर की ओर प्रस्थान करते हैं जिसके बारे में कहा जाता है ,कि यह शहर कर्म - कर्तव्य की सीख देता है । एक ऐसा शहर, जो अपनी दिनचर्या की शुरूआत के साथ बोध कराता है समूह की महत्वाकांक्षा का, लक्ष्य प्राप्ति के प्रति आशान्वित प्रयास का, कार्य के प्रति कटिबद्धता का और तारतम्यता के साथ निरन्तर प्रगतिशील रहने की परम्परा का।कोलकाता का शाब्दिक भाव -
को - कोरस यानी समूह
ल - लक्ष्य
का - कार्य और
ता - तारतम्य
एक ऐसा प्राचीन शहर, जिसका नाम उसकी गौरवशाली सांस्कृतिक विरासत और मानवीय दृष्टिकोण को प्रतिविम्बित करता है। विश्व के महान नगरों में से एक, जहां गंगा अपनी समस्त सहायक नदियों के साथ सामूहिकता का बोध कराती हुई एक निश्चित परिणाम को प्राप्त करती है। अत्यन्त प्राचीन और समृद्ध परम्परा को अपने अन्तर में सजोये यह महानगर जहां एक ओर अपनी संस्कृति, बंगला भाषा, कला-प्रेम, दूरदर्शिता एवं कार्यो के प्रति कटिबद्धता के लिये प्रसिद्ध है, वहीं सामूहिक श्रमशक्ति को प्रमुखता के साथ प्रतिष्ठापित करते हुये निरन्तर प्रगति-पथ पर गुणवत्ता के साथ क्रियाशील है।

कोलकाता
वासी पूजते हैं - काली के रूप में शक्ति को, महत्व देते हैं संगठन को और मिष्ठान को संस्कृति का अहम् हिस्सा के रूप में स्वीकार करते हुये प्रतिविम्बित करते हैं वाणी की मधुरता को।
एक बार गोपाल कृष्ण गोखले ने कहा था कि - ‘‘जो आज बंगाल सोचता है, वह कल भारत सोचेगा।’’

.........शेष अगले पोस्ट में