नाम की कहानी और विवाद चाहे जो भी हों इतना तो अवश्य तय है कि यह आधुनिक भारत के शहर में सबसे पहले बसने वाले शहरों में से एक है।
Tuesday, February 17, 2009
जिसके स्वर्णिम इतिहास और समृद्ध वर्तमान की कायल है, समूची दुनिया।
नाम की कहानी और विवाद चाहे जो भी हों इतना तो अवश्य तय है कि यह आधुनिक भारत के शहर में सबसे पहले बसने वाले शहरों में से एक है।
Friday, February 13, 2009
एक ऐसा शहर जो संगठन की शक्ति को प्रमाणित करता है ....
को - कोरस यानी समूह
ल - लक्ष्य
का - कार्य और
ता - तारतम्य
एक ऐसा प्राचीन शहर, जिसका नाम उसकी गौरवशाली सांस्कृतिक विरासत और मानवीय दृष्टिकोण को प्रतिविम्बित करता है। विश्व के महान नगरों में से एक, जहां गंगा अपनी समस्त सहायक नदियों के साथ सामूहिकता का बोध कराती हुई एक निश्चित परिणाम को प्राप्त करती है। अत्यन्त प्राचीन और समृद्ध परम्परा को अपने अन्तर में सजोये यह महानगर जहां एक ओर अपनी संस्कृति, बंगला भाषा, कला-प्रेम, दूरदर्शिता एवं कार्यो के प्रति कटिबद्धता के लिये प्रसिद्ध है, वहीं सामूहिक श्रमशक्ति को प्रमुखता के साथ प्रतिष्ठापित करते हुये निरन्तर प्रगति-पथ पर गुणवत्ता के साथ क्रियाशील है।
कोलकाता वासी पूजते हैं - काली के रूप में शक्ति को, महत्व देते हैं संगठन को और मिष्ठान को संस्कृति का अहम् हिस्सा के रूप में स्वीकार करते हुये प्रतिविम्बित करते हैं वाणी की मधुरता को।
एक बार गोपाल कृष्ण गोखले ने कहा था कि - ‘‘जो आज बंगाल सोचता है, वह कल भारत सोचेगा।’’
.........शेष अगले पोस्ट में
Friday, January 23, 2009
एक ऐसा शहर जो साक्षी है संस्कृति विकास के समस्त चरणों का ....!
Monday, January 19, 2009
पराक्रम, प्रमाणिकता और नातेदारी से मिलकर बना है पटना
महाभारत काल में मगध साम्राज्य को समृद्धि से जोड़कर विलाक्षनता का प्रमाण देने वाला शासक जरासंध , अपनी निपुणता तथा कुटनीतिक तर्कों के आधार पर व्यापक चिंतन सरोकार देने वाला चिन्तक चाणक्य और शून्य की संरचना करते हुए खगोल शास्त्र को प्रमाणिक आधार देने वाला अन्वेषक आर्यभट्ट को जन्म देकर यह भूमि विश्व में अपनी प्रमाणिकता को प्रतिविन्वित करती है । इस प्रकार पटना का दूसरा अक्षर "ट" वोध कराता है टकसाल यानी प्रमाणिकता का ।
यह वही भूमि है जहाँ विश्व विजेता सिकंदर महान की सफलता का रथ अचानक थम गया था । वहीं सिक्खों के दसवें गुरु गुरु गोविन्द सिंह की जन्म स्थली पटना साहेब को प्राकट्य करके यह भूमि विश्व समुदाय में नातेदारी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को प्रमाणित करती है । भारत का यह एक मात्र ऐसा शहर है जहाँ कई महत्वपूर्ण संस्कृतियाँ एक साथ प्रवाहित होती है । इस प्रकार पटना का अन्तिम अक्षर "ना" विश्व वन्धुत्व अर्थात विश्व से नातेदारी का बोध कराता है ।
अर्थात पराक्रम , प्रमाणिकता और नातेदारी का एहसास कराता है यह पटना शहर ।
पटना का इतिहास काफी पुराना है जो पवित्र नदी गंगा के किनारे बसा हुआ है। पटना भारत के गौरवशाली शहरों में से एक है। इस शहर को ऐतिहासिक इमारतों के लिए भी जाना जाता है। पटना का इतिहास पाटलीपुत्र के नाम से 5वीं सदी में शुरू होता है। तीसरी सदी ईसा पूर्व में पटना मगध की राजधानी बनी जहां के शासक महान सम्राट अशोक हुए। सम्राट अशोक के शासनकाल को भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। चूंकि पटना से वैशाली, राजगीर, नालंदा, बोधगया और पावापुरी के लिए मार्ग जाता है, इसलिए यह शहर बौद्ध और जैन धर्मावलंबियों के लिए गेटवे' के रूप में भी जाना जाता है। आजादी मिलने के बाद पटना बिहार राज्य की राजधानी बनी। पटना पर्यटन के लिहाज से एक प्रमुख स्थान है। यह वाणिज्यिक रूप से भी बिहार का एक प्रमुख शहर है। इसके अलावा महात्मा गांधी सेतु पटना को बिहार के अन्य पर्यटन स्थल से सड़क के माध्यम से जोड़ता है। यह पुल 7.5 किलोमीटर लंबा है। गोलघर, हरमंदिर, कुम्हरार आदि यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।
पटना एक ओर जहां शक्तिशाली राजवंशों के लिए जाना जाता है। वहीं दूसरी ओर ज्ञान और अध्यात्म के कारण भी यह काफी लोकप्रिय रहा है। यह शहर कई प्रबुद्ध यात्रियों जैसे फाह्यान, ह्वेनसांग के आगमन का भी साक्षी है। कई इतिहासविद यह भी मानते हैं कि महानतम कूटनीतिज्ञ कौटिल्य ने यहीं पर अर्थशास्त्र की रचना की थी।
इस प्रकार यह शहर कई संस्कृतियों की पहचान है और इन्ही सब कारणों से मेरा भारत महान है !
Tuesday, January 6, 2009
उच्च विकसित कुलीन संस्कृति के लिए विख्यात है लखनऊ
लखनऊ में वास्तुशिल्प के उत्कृष्ट उदाहरण है - बड़ा इमामवाड़ा , जो एक मंजिला इमारत है , जहाँ मुहर्रम के महीने के दौरान शिया मुसलमान इकठ्ठा होते हैं। रूमी दरबाजा तुर्की दरबाजा इन्स्ताम्बुल के बाब-ऐ-हुमायूं की तर्ज़ पर बनाया गया है और सर्वाधित संरक्षित स्मारक रेजीडेंसी , जो १८५७ में विद्रोह के दौरान ब्रिटिश टुकडियों की आत्म रक्षा का स्थल था । १८५७ में यहाँ विद्रोह के दौरान शहीद हुए भारतीयों की स्मृति में एक स्मारक बनाया गया ।
यहीं पर हुआ था १९१६ का ऐतिहासिक लखनऊ समझौता , बाल गंगाधर तिलक और मुहम्मद अली जिन्ना के बीच । कुल मिलाकर लखनऊ हमारी तहजीव की एक अलग पहचान है और यहाँ जो भी एक बार आ जाता ,मेहमाननवाजी देखकर कह उठता कि सचमुच मेरा भारत महान है ।
Sunday, December 28, 2008
आईये दिल्ली के बाद ग़ज़ल की लखनवी महफ़िल में शिरकत करें चंद अशआरों के साथ -
लखनऊ : जिसके दामन में मुहब्बत के फूल खिलते हैं...
आज २७ दिसम्बर है , उर्दू के मशहूर शायर मिर्जा असदुल्लाह खाँ ग़ालिब का और हम चर्चा कर रहे हैं गालिब के शहर दिल्ली का , जिसे २००० वर्ष पूर्व बसाया था गुप्त साम्राज्य ने । वैसे तो इसका इतिहास जुडा है महाभारत काल से , मगर दिल्ली नही खांडव प्रस्थ और इन्द्रप्रस्थ के रूप में । दिल्ली ही एक ऐसा शहर है जिसके बारे में कहते - कहते थक जायेंगे आप , शब्दों की श्रृंखलाएं छोटी पड़ जायेंगी मगर अंत नही होगा दिल्ली की कहानी का । दिल्ली के बाद जो शहर गालिब का पसंदीदा रहा उसमें से एक है तहजीव का शहर लखनऊ , जिसके बारे में गालिब ने कहा है , की -
"वां पहुँच कर जो गश आता पैदम है हमको ,
सद रहें आहंगे जमीन बोस कदम है हमको ,
लखनऊ आने का बाईस नही खुलता यानी -
हाविसे सिरों तमाशा सो वह कम है हमको । "
जब लखनऊ का जिक्र आ ही गया , तो चलिए चर्चा करते हैं नबाबों केशहरलखनऊ की । इस शहर को तहजीब का शहर भी कहते हैं , जिसके बारे में किसी शायर ने कहा है - " लखनऊ है तो महज गुम्बद वो मीनार नही , सिर्फ़ एक शहर नही कूचा वो बाज़ार नहीं , इसके दामन में मुहब्बत के फूल खिलते हैं - इसकी गलियों में फरिश्तों के पते मिलते हैं ... !"
लखनऊ की चर्चा हो और वहाँ के एक अजीम फनकार और ब्लोगर रवीन्द्र प्रभात की चर्चा न हो तो बेमानी होगा , क्योंकि उन्होंने कुछ तो है ......जो कि ब्लॉग पर ग़ज़ल के माध्यम से लखनऊ की संस्कृति पर बहुत हीं सुंदर अभिव्यक्ति दी है । मुझे बहुत पसंद आयी , संभव है आपको भी आयी होगी । यह ग़ज़ल तब आयी थी जब मेरा यह ब्लॉग अस्तित्व में भी नही था । वैसे लखनऊ के ऊपर अपने एक संस्मरण में भी परिकल्पना पर उन्होंने कहा है " आदाब से अदब तक यही है लखनऊ मेरी जान ....!" मैं साहित्यकार नहीं हूँ जो किसी शहर के बारे में ऐसी अनुभूति दे सकूं । फ़िर भी मुझे जो अच्छा लगता है उसका उल्लेख करना अपना धर्म समझती हूँ । अगर आप न पढ़े हों तो इस संस्मरण को अवश्य पढ़े । अपने शहर के बारे में ऐसी अनुभूति हर किसी में होनी चाहिए ।
लखनऊ पर मैं अपनी शेष बातें रखूँगी अब अगले पोस्ट में , तब तक के लिए शुभ विदा !